10 मिनट पहले
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भारतीय वैज्ञानिक राशि जैन ने अपने गाइड प्रो. योगेश वाडदेकर के साथ मिलकर एक नई गैलेक्सी की खोज की है। यह एक सर्पिलाकार (Spiral) गैलेक्सी है, जिसका नाम अलकनंदा रखा गया है।
इसका नाम हिमालय की तलहटी में बहने वाली नदी अलकनंदा के नाम पर रखा गया है। इसे NASA के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की मदद से खोजा गया है।

जेम्स वेब टेलीस्कोप से नई खोजी गई गैलेक्सी अलकनंदा का दृश्य।
दैनिक भास्कर ने राशि जैन से बातचीत की। उन्होंने इस बातचीत में अपनी लाइफ, रिसर्च और यहां तक पहुंचने की जर्नी के बारे में बताया।
सवाल 1. नई गैलेक्सी, ‘अलकनंदा’ क्या है?
जवाब: हमने जो गैलेक्सी खोजी है वो मिल्की-वे यानी मंदाकिनी के जैसी ही दिखती है। इसे हमनें जेम्स वेब टेलिस्कोप की मदद से खोजा है। ये गैलेक्सी तब भी थी जब ब्रह्मांड की आयु केवल 1.5 अरब थी। इसका नाम हमने उत्तराखंड में बहने वाली नदी अलकनंदा पर रखा है। अलकनंदा लगभग 4 की रेड-शिफ्ट पर है। उसके प्रकाश को हम तक पहुंचने में लगभग 12 अरब साल लगे हैं।

अलकनंदा बहुत ताकतवर गैलेक्सी है। अलकनंदा का मास यानी द्रव्यमान हमारे सूरज से लगभग 10 अरब गुना ज्यादा है। यह हर साल 63 सूरज जितने नए तारे बना रही है। यह हमारी अपनी आकाशगंगा ‘मंदाकिनी (Milky Way)’ के मुकाबले 20–30 गुना ज्यादा तेजी से तारे बना रही है।
सवाल 2. नई गैलेक्सी की खोज कैसे होती है?
जवाब: इस ब्रह्मांड में अरबों-खरबों गैलेक्सी हैं। नई गैलेक्सी खोजने के बाद ये पता लगाना होता है कि उसमें क्या खासियत है। इस प्रोजेक्ट में हमने शुरुआत में ऐसे सोचा की जो गैलेक्सी हमसे काफी दूर हैं, उनका रेड-शिफ्ट 3 से ज्यादा है। उससे पता करें कि उनकी मॉर्फोलॉजी यानी बनावट कैसे बदलती है।
इस काम के लिए सबसे अच्छी दूरबीन JWST यानी जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप है। ये बहुत दूर के गैलेक्सी को डिटेक्ट करने में माहिर है। हमने सोचा की JWST के डेटा का इस्तेमाल करके हम यहां रिसर्च करेंगे। JWST का ‘अन-कवर’ नाम का एक सर्वे था। उसका डेटा हमने लिया और एक सॉफ्टवेयर में उसे रन किया, जिससे पता चला कि हर एक गैलेक्सी की रेड-शिफ्ट कितनी है।

शुरुआत में हमारे पास 74,000 गैलेक्सियां थीं। सॉफ्टवेयर रन करने के बाद पता चला कि रेड-शिफ्ट 4 में तकरीबन 2,700 से ज्यादा गैलेक्सी हैं। इन गैलेक्सिया पर ज्यादा डिटेल में काम शुरू किया गया।
सभी गैलेक्सी का एनालिसिस करने के बाद ये एक विशेष गैलेक्सी दिखी, जो सर्पिल शेप यानी कुंडलीदार है। इसे देखने के बाद पता चला की ये एक बड़ा आविष्कार है।
पहले हमारा प्लान था कि सभी 2,700 गैलेक्सी का एनालिसिस करके उसके ऊपर एक रिसर्च पेपर लिखा जाए। लेकिन फिर हमने तय किया कि उसको अभी अलग रखते हैं।
स्टेलर पॉपुलेशन सिन्थेसिस नाम की तकनीक का इस्तेमाल करके ये पता लगाया कि इस गैलेक्सी में कितने तारे हैं, तारों में मास कितना है। इसके नए तारे बनाने की स्पीड कितनी है। इस तरह की मॉडलिंग करके हमने इसपर एक रिसर्च पेपर लिखने का काम शुरू किया।
सवाल 3. इस खोज से मानव जीवन को क्या फायदा होगा?
जवाब: हम जो रिसर्च कर रहे हैं, इसका तुरंत कोई फायदा नहीं होगा। इसका फायदा इनडायरेक्टली होता है। उदाहरण के लिए जैसे- 1970 के दशक में अमेरिका के बेल लैब्स में वैज्ञानिकों ने CCD यानी चार्ज-कपल्ड डिवाइस की खोज की थी, जिससे हम डिजिटल इमेज बना पाए।
शुरुआत में इसकी क्वालिटी बेहद खराब थी, कोई भी कॉमर्शियल कैमरा बनाने वाला इसमें दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था। पर खगोलविदों ने सोचा कि इसका भविष्य में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके बाद खगोलविदों ने इंजीनियर्स के साथ काम करना शुरू किया।
20 साल तक 4 या 5 CCD के जेनरेशन आए। हर जेनरेशन में क्वालिटी इंप्रूव होती गई। 1990 के दशक में इंजीनियर्स ने देखा कि अब CCD की टेक्नोलॉजी काफी सुधर गई है, इससे हम डिजिटल कैमरा बना सकते है। फिर ये टेक्नोलॉजी बाकी जगह भी अपना ली गई।
इसके अलावा GPS जिसे आज हम मैप के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। ये भी एस्ट्रोफिजिक्स की वजह से ही संभव हो पाया है।
सवाल 4. मिडिल क्लास बच्चा इस प्रोफेशन में आना चाहे तो क्या करे?
जवाब: मेरी मां टीचर हैं। उन्होंने बचपन से ही मुझे सपोर्ट किया है। मैने पहले IIT BHU से BTech की थी। हालांकि, BSc करके भी इस फील्ड में आ सकते हैं। बस आपको कोशिश करनी है कि अच्छी यूनिवर्सिटी से मास्टर्स कर पाओ। इसके बाद आपको कुछ एग्जाम देने हैं। एग्जाम के बाद आपका इंटरव्यू होगा, जिससे फाइनल सिलेक्शन होगा।
इसके अलावा आप एस्ट्रोनॉमी से जुड़े इंस्टीट्यूट भी जॉइन कर सकते हैं। इस फील्ड में रिसर्च करने पर आपको कई सुविधाएं मिलती हैं। आपको हर महीना कुछ स्टाइपेंड मिलता है। रहने के लिए हॉस्टल मिलता है। खुद का ऑफिस भी मिलता है। मेरा मानना है कि इंडिया एस्ट्रोफिजिक्स में बहुत अच्छा है। सभी को इंडिया में रहकर ही इसकी पढ़ाई करनी चाहिए।

बचपन से एस्ट्रोफिजिक्स में इंटरेस्ट था
राजस्थान के भरतपुर में जन्मी राशि की मां साइंस टीचर हैं। उन्होंने ही राशि को विज्ञान के क्षेत्र में करियर बनाने की गाइडेंस दी। राशि को बचपन से ही साइंस में इंटरेस्ट था। वो हमेशा ये जानने में लगी रहती थी कि तारे नजदीक से कैसे दिखते हैं। सूरज कैसा होता है।
मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में BTech हैं
भरतपुर से स्कूलिंग के बाद उन्होंने कोटा से IIT JEE की प्रिपरेशन की। इसके बाद उनका सिलेक्शन IIT BHU में हो गया। यहां से उन्होंने मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में BTech किया।
चूंकि, मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में फिजिक्स नहीं पढ़ना होता है। ऐसे में उन्होंने फ्री टाइम में इसकी खुद से पढ़ाई की।
इंटीग्रेटेड PhD प्रोग्राम की स्टूडेंट हैं
ग्रेजुएशन के बाद राशि ने नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स यानी NCRA से इंटीग्रेटेड PhD प्रोग्राम में दाखिला लिया। फिजिक्स बैकग्रांउड से नहीं होने के चलते इस फील्ड में आने में थोड़ी दिक्कत भी हुई।
PhD के दौरान उनके गाइड प्रो. योगेश वाडदेकर बने। उन्हीं के साथ मिलकर राशि ने ई गैलेक्सी, अलकनंदा की खोज की।

राशि जैन अपने गाइड प्रो. योगेश वाडदेकर (दाएं) के साथ। (फोटो- विद स्पेशल परमिशन)
प्रो. योगेश के गाइडेंस में खोजी नई गैलेक्सी
प्रो. योगेश वाडदेकर मुंबई के रहने वाले हैं। उन्होंने IIT Bombay से BTech किया है। उसके बाद IUCAA यानी इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स से PhD किया। फिर लगभग 6 साल विदेश में खगोल विज्ञान के क्षेत्र में काम किया है। उसके बाद भारत में आकर खगोल के क्षेत्र में रिसर्च करते हैं और PhD के स्टूडेंट्स को पढ़ाते भी हैं।
इंटरव्यू/स्टोरी – देव कुमार
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