Classes up to 5th standard in Delhi in hybrid mode | दिल्ली में 5वीं तक की क्लासेज हाइब्रिड मोड में: हर साल प्रदूषण की वजह से बंद करने पड़ते हैं स्कूल, सरकारी स्कूलों के बच्चों पर दोहरी मार

12 मिनट पहलेलेखक: उत्कर्षा त्यागी

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दिल्ली NCR में पॉल्यूशन का स्तर दिन पर दिन खराब होता जा रहा है। केंद्र सरकार ने ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान यानी GRAP का स्टेज 3 लागू कर दिया है। नए डायरेक्टिव्स के अनुसार 5वीं तक के स्कूलों को हाइब्रिड मॉडल अपनाने के लिए कहा गया है। इसके तहत पेरेंट्स या स्टूडेंट्स जहां अवेलेबल है, वहां ऑनलाइन क्लासेज का विकल्प चुन सकते हैं।

ये फैसला दिल्ली में AQI यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स के खराब होते स्तर की वजह से लिया गया है। 10 नवंबर को AQI 362 था, जो सोमवार को 425 हो गया। इसके बाद दिल्ली के लोगों को घर में ही रहने की सलाह दी गई है।

अधिकारियों का कहना है कि खासतौर पर बच्चों और बुजुर्गों को कम से कम घर से बाहर निकलना चाहिए।

अधिकारियों का कहना है कि खासतौर पर बच्चों और बुजुर्गों को कम से कम घर से बाहर निकलना चाहिए।

5वीं तक की क्लासेज हाइब्रिड मोड में चलेंगी

नए डायरेक्टिव के अनुसार, DoE, NDMC, MCD और दिल्ली कैंटोनमेंट के सभी सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों को 5वीं तक की क्लासेज हाइब्रिड मोड में कंडक्ट करने का निर्देश दिया है। इन निर्देशों का तुरंत पालन किया जाएगा। साथ ही स्कूलों के हेड्स को पेरेंट्स और स्टूडेंट्स को इसकी जानकारी देनी होगी।

कोविड के बाद से राजधानी दिल्ली में हर साल दिवाली के बाद कम से कम एक हफ्ता या तो स्कूलों की छुट्टी की जाती है या ऑनलाइन क्लासेज चलाई जाती हैं।

पेरेंट्स की मांग- 12वीं तक के लिए हो हाइब्रिड मोड

पेरेंट्स एसोसिएशन की अपराजिता गौतम कहती हैं, ‘5वीं तक के लिए हाइब्रिड मोड का सरकार का फैसला अच्छा है लेकिन प्रदूषण उम्र नहीं देखता। ऐसे में 12वीं तक के बच्चों के लिए हाइब्रिड मोड होना चाहिए। बच्चों के यूनिट टेस्ट आने वाले हैं, ऐसे में बच्चे अभी बीमार होंगे तो उनका नुकसान हो सकता है। इसके अलावा, बोर्ड एग्जाम्स वाले बच्चों के लिए भी ऑनलाइन एग्जाम्स की सुविधा होनी चाहिए।’

पेरेंट्स का कहना है कि हाइब्रिड मोड से बच्चों की पढ़ाई का नुकसान तो होता है लेकिन इसके अलावा कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है। बच्चे लगातार बीमार हो रहे हैं। एक हफ्ता बीमार होने के बाद कुछ बच्चे जब स्कूल गए तो दोबारा एक हफ्ते के लिए बीमार पड़ गए। गला खराब, बहती नाक, खांसी, थकान और बुखार की शिकायतें लगातार बच्चों को हो रही है। कई बच्चों में ब्रॉन्काइटिस और अस्थमा के लक्षण भी देखे जा रहे हैं जिसकी वजह से उन्हें नेबुलाइजर पर निर्भर होना पड़ रहा है।

अपराजिता ने कहा, ‘स्कूलों में बच्चों की अटेंडेंस देखकर साफ है कि बच्चे लगातार बीमार पड़ रहे हैं।’

पेरेंट्स सवाल कर रहे हैं कि क्या पॉल्यूशन 5वीं तक के बच्चों के लिए ही है?

पेरेंट्स सवाल कर रहे हैं कि क्या पॉल्यूशन 5वीं तक के बच्चों के लिए ही है?

सरकारी स्कूलों के बच्चों के लिए एक तरफ खाई, दूसरी तरफ कुआं

अपराजिता गौतम का कहना है कि इतने पॉल्यूशन में बच्चों का स्कूल जाना सुरक्षित नहीं है। ऐसे में उनके लिए ऑनलाइन क्लासेज की सुविधा होनी चाहिए।

UNICEF की 2021 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल 24% भारतीय घरों में ऑनलाइन लर्निंग को सपोर्ट करने के लिए इंटरनेट एक्सेस है। दिल्ली जैसे शहरों में भी, बहुत से बच्चों को एक स्मार्टफोन अपने पेरेंट्स और भाई-बहनों के साथ शेयर करना पड़ता है।

2023 में आई वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट ‘लर्निंग लॉस इन साउथ एशिया’ के अनुसार ऑनलाइन क्लासेज की वजह से प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के बीच लर्निंग गैप बड़ा हो गया। कुछ एक्सपर्ट्स ने कहा कि इस लर्निंग गैप को कवर करने के लिए ब्रिज कोर्सेज की जरूरत हैं, नहीं तो यह लर्निंग गैप इनकम डिवाइड का रूप ले सकता है।

ऐसे में जब दिल्ली में हर साल प्रदूषण के कारण सरकारी स्कूल भी बंद किए जाते हैं या ऑनलाइन क्लासेज चलाई जाती हैं, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का नुकसान होता है। उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि स्कूल जाएं तो बीमार होंगे और स्कूल न जाएं तो पढ़ाई का भारी नुकसान। इससे आगे चलकर उनके भविष्य पर भी गहरा असर पड़ सकता है।

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