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FIDE World Cup trophy named after Grandmaster Viswanathan Anand | ग्रैंडमास्टर व‍िश्वनाथन आनंद के नाम पर FIDE वर्ल्ड कप ट्रॉफी: 5 बार वर्ल्ड चेस चैंपियन बने, तीनों पद्म सम्‍मान मिले; जानें पूरी प्रोफाइल

43 मिनट पहले

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FIDE वर्ल्ड चेस कप 2025 की नई ट्रॉफी को अब आधिकारिक तौर पर ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद के नाम पर ‘विश्वनाथन आनंद ट्रॉफी’ के रूप में जाना जाएगा। यह घोषणा 31 अक्टूबर 2025 को गोवा में FIDE वर्ल्ड चेस कप 2025 के उद्घाटन समारोह के दौरान की गई थी। भारत 23 साल बाद इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट की मेजबानी कर रहा है।

आनंद 5 बार के वर्ल्ड चेस चैंपियन, 2 बार के वर्ल्ड रैपिड चैंपियन, एक बार के वर्ल्ड ब्लिट्ज चेस कप विजेता और 6 बार के चेस ऑस्कर विजेता रह चुके हैं।

मां से सीखे शतरंज के गुर

आनंद के पिता विश्वनाथन अय्यर दक्षिण रेलवे में जनरल मैनेजर थे। उनकी मां सुशीला एक हाउस वाइफ थीं। उन्हें शतरंज का बहुत शौक था और वे एक प्रभावशाली समाजसेवी भी थीं।

आनंद तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। वे अपनी बहन से 11 साल और अपने भाई से 13 साल छोटे हैं। उनके भाई शिवकुमार भारत में क्रॉम्पटन ग्रीव्स कंपनी में मैनेजर हैं, जबकि उनकी बहन अनुराधा यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन (अमेरिका) में प्रोफेसर हैं।

आनंद ने 6 साल की उम्र में शतरंज सीखना शुरू किया। उन्हें इसकी शुरुआती शिक्षा अपनी मां से मिली। हालांकि, शतरंज की बारीकियां उन्होंने मनीला (फिलीपींस) में सीखीं, जहां वे अपने पेरेंट्स के साथ 1978 से 1980 के बीच रहे। उस समय उनके पिता फिलीपींस नेशनल रेलवे में बतौर सलाहकार (कंसल्टेंट) कार्यरत थे।

द लाइटनिंग किड नाम से मशहूर थे

आनंद ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मैं जब 6 साल का था, तब मेरे बड़े भाई और बड़ी बहन चेस खेल रहे थे। ये देखकर मैंने अपनी मां से मुझे चेस सिखाने के लिए कहा। इसके बाद उन्होंने मुझे चेस सिखाया। वो मेरी पहली गुरू थीं। शुरुआत में कई सारी चीजें सीखना मुश्किल था। लेकिन मैं लगातार कोशिश करता रहा। मां को जब ये एहसास हुआ कि मुझे इस खेल में दिलचस्पी है तो उन्होंने मेरा दाखिला चेन्नई चेस क्लब में करवा दिया। बचपन में फास्ट गेम खेलने के कारण आनंद ‘द लाइटनिंग किड (The Lightning Kid)’ के नाम से मशहूर थे।

विश्व शतरंज खिताब जीतने वाले पहले एशियाई खिलाड़ी बने

आनंद जब 14 साल के थे, तब उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय सब-जूनियर चैंपियनशिप जीती। वो 9 में से 9 मैच जीतकर, यानी फुल स्कोर के साथ चैंपियन बने थे। 15 साल की उम्र में, वे भारत के सबसे युवा अंतर्राष्ट्रीय मास्टर बने। अगले ही साल उन्होंने लगातार 3 नेशनल चैंपियनशिप में पहला स्थान हासिल किया।

17 साल की उम्र में, आनंद ने इतिहास रच दिया और वे विश्व शतरंज खिताब जीतने वाले पहले एशियाई खिलाड़ी बने। उन्होंने 1987 की FIDE वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप जीती, जो उन खिलाड़ियों के लिए होती है जिनकी उम्र प्रतियोगिता के साल के 1 जनवरी तक 20 साल से कम होती है। इस जीत के बाद, उन्होंने 1988 में अंतर्राष्ट्रीय ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया और वे भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने।

2800 एलो मार्क्स क्रॉस करने वाले चौथे चेस प्लेयर

वे 1988 में भारत के पहले ग्रैंडमास्टर बने और अब तक के 8वें सबसे हाईएस्ट FIDE रेटिंग होल्डर हैं। 2000 में, आनंद ने अलेक्सी शिरोव को 6 मैचों की सीरीज में हराकर FIDE विश्व शतरंज चैंपियनशिप जीती थी, जिसे उन्होंने 2002 तक अपने पास रखा।

अप्रैल 2006 में आनंद इतिहास में ऐसे चौथे खिलाड़ी बने जिन्होंने FIDE रेटिंग लिस्ट में 2800 एलो (Elo) मार्क्स का आंकड़ा पार किया। उनसे पहले यह उपलब्धि केवल क्रामनिक, टोपालोव और गैरी कास्पारोव के पास थी। वे 21 महीनों तक विश्व नंबर 1 रहे, जो अब तक का छठा सबसे लंबा ड्यूरेशन है।

विश्वनाथन आनंद को भारत में शतरंज का पायनियर माना जाता है।

पहला राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिला

आनंद को खेल के क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए 1985 में भारत का दूसरा सबसे बड़ा खेल सम्मान अर्जुन अवॉर्ड मिला। फिर उन्हें 1991-92 में पहले राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार (जिसे अब मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कहा जाता है) से सम्मानित किया गया।

इसके अलावा, 1987 में भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री, 2000 में भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण, 2007 में भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण मिला।

तमिलनाडु सरकार की शिक्षा-नीति टीम के सदस्य हैं

तमिलनाडु सरकार ने केंद्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का एक विकल्प यानी अपनी ‘राज्य शिक्षा नीति’ (SEP) का मसौदा तैयार करने के लिए अप्रैल 2022 में एक उच्च-स्तरीय समिति का गठन किया था। इसमें विश्वनाथन आनंद को शामिल किया गया था। इस समिति की अध्यक्षता दिल्ली हाईकोर्ट के रिटायर्ड मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डी. मुरुगेसन ने की थी।

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