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19 मिनट पहलेलेखक: उत्कर्षा त्यागी
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बच्चों के राष्ट्रपति के तौर पर डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम देशभर के स्टूडेंट्स के बीच बहुत लोकप्रिय हुए। हर साल 15 अक्टूबर को उनका जन्मदिन वर्ल्ड स्टूडेंट्स डे के रूप में मनाया जाता है। आज अब्दुल कलाम को याद करते हुए जानते हैं उनके जीवन के कुछ अनकहे किस्से।

इस तस्वीर में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साल 2000 के लिए बेस्ट पार्लियामेंटेरियन का अवॉर्ड अर्जुन सिंह (दाएं) दो दे रहे हैं। बीच में लोक सभा स्पीकर सोमनाथ चैटर्जी हैं।
किस्सा 1 – पिता ने दिखाई अध्यात्म की राह
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जन्म मद्रास के रामेश्वरम द्वीप के एक तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुलाबुद्दीन फॉर्मल शिक्षा तो नहीं ग्रहण सके थे लेकिन उनका ज्ञान ऐसा था कि आसपास के लोग हर छोटी-बड़ी चीज पर सुझाव के लिए उनके पास आया करते थे।

अपने पिता को लेकर अब्दुल कलाम कहते हैं, ‘मेरे पिता अध्यात्म से जुड़े बेहद जटिल मुद्दों को भी आसानी से समझा दिया करते थे। मैं सारी जिंदगी अपनी साइंस और तकनीक की दुनिया में अपने पिता का ही अनुसरण करने की कोशिश करता रहा हूं।’
पास ही के रामेश्वरम मंदिर के सबसे बड़े पुजारी पक्षी लक्षमन शास्त्री अब्दुल कलाम के पिता के घनिष्ठ मित्र थे। दोनों घंटों बैठकर अध्यात्म और धर्म की चर्चा करते। अब्दुल कलाम जब थोड़े बड़े हुए तो पिता से प्रार्थना के महत्व के बारे में पूछा। तब उनके पिता ने कहा, ‘प्रार्थना के जरिए लोगों की आत्माओं का मिलन होता है। जब आप प्रार्थना करते हैं तो आपका शरीर ब्रह्मांड का हिस्सा बन जाता है। तब आपको कोई विभाजन या भेदभाव महसूस नहीं होता। सभी धर्म, उम्र, जेंडर वाले लोग एक जैसा महसूस करते हैं।’
आगे की पढ़ाई के लिए जब अब्दुल कलाम को रामेश्वरम छोड़ना पड़ा तो उनके पिता ने कहा, ‘अबुल, मैं जानता हूं आगे बढ़ने के लिए तुम्हें दूर जाना ही पड़ेगा। जिस तरह सीगुल अकेले आगे बढ़ता है, उसी तरह तुम्हें भी आगे बढ़ना होगा।’
इसके बाद पिता कलाम और उनके तीन भाईयों को मस्जिद लेकर गए। रामेश्वरम स्टेशन पर ट्रेन में बैठाते हुए पिता ने कलाम से कहा, ‘इस द्वीप पर तुम्हारा शरीर रहा लेकिन तुम्हारी आत्मा यहां नहीं थी। तुम्हारी आत्मा आने वाले कल की उम्मीदों में है जहां रामेश्वरम से कोई नहीं आ सकता, सपने में भी नहीं।’
किस्सा 2 – क्लास में टोपी पहनने पर टीचर ने पीछे बैठाया
उस समय अब्दुल कलाम रामेश्वरम एलिमेंट्री स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ते थे। रामेश्वरम मंदिर के पुजारी का बेटे रामानाधा शास्त्री से कलाम की गहरी दोस्ती थी और दोनों क्लास में पहली बेंच पर साथ में बैठते थे। कलाम सिर पर टोपी पहनते थे तो वहीं रामानाधा के कंधे पर जनेऊ रहता।
एक दिन क्लास में एक नए टीचर आए। उनसे यह नहीं देखा गया कि पुजारी का बेटा एक मुसलमान के साथ बैठा हुआ है। टीचर ने तुरंत अब्दुल कलाम से पीछे जाकर बैठने को कहा। कलाम को दुख हुआ लेकिन टीचर की बात टाल नहीं सकते थे। सो सामान समेटा और पीछे जाने लगे। दूसरी ओर उनका पक्का दोस्त रामानाधा शास्त्री फूट-फूटकर रोने लगा। स्कूल खत्म होने के बाद दोनों दोस्तों ने अपने-अपने घर में यह किस्सा बताया। लक्षमना शास्त्री ने जब बेटे के मुंह से यह बात सुनी तो उन्होंने तुरंत उस टीचर को बुलवाया।
लक्षमना शास्त्री ने कहा, ‘सामाजिक असमानता और सांप्रदायिक असहिष्णुता का जहर बच्चों के दिमाग में भरने की जरूरत नहीं है। जो किया है या तो उसकी माफी मांगों या रामेश्वरम से चले जाओ।’ इसके बाद टीचर ने न सिर्फ माफी मांगी बल्कि अपने व्यवहार में सुधार भी किया।
दूसरी ओर कलाम के साइंस टीचर सिवासुब्रमनिया अय्यर थे। वो ब्राह्मण थे और उनकी पत्नी बेहद रूढिवादी विचारों की थी। वो सामाजिक रुकावटों को पाटने की काफी कोशिशें करते रहते थे। वो अब्दुल कलाम के साथ घंटो बिताते और कहते, ‘कलाम मैं चाहता हूं कि तुम आगे बढ़ो और बड़े शहरों के पढ़े-लिखे लोगों के साथ मुकाबला करो।’
किस्सा 3 – टीचर की ब्राह्मण पत्नी ने खाना परोसने से मना किया
एक दिन एक टीचर सिवासुब्रमनिया अय्यर ने अब्दुल कलाम को अपने घर खाने पर बुलाया। टीचर की पत्नी अपने घर में एक मुस्लिम लड़के को देखकर हक्की-बक्की रह गईं। उन्होंने अपनी साफ-सुथरी रसोई में मुसलमान लड़के को खाना परोसने से मना कर दिया।
अय्यर इससे नाराज नहीं हुए। उन्होंने कलाम को अपने हाथों से खाना परोसा और खुद भी बराबर में आसन डालकर खाना खाने बैठ गए। टीचर की पत्नी रसोई के दरवाजो पर खड़ी-खड़ी यह देखती रहीं।
खाना खाकर जब कलाम घर जाने लगे तो टीचर ने उन्हें रोका और अगले हफ्ते फिर आने को कहा। कलाम की झिझक देखकर टीचर ने कहा, ‘जब आप बदलाव करने की ठान लो तो इस तरह की चीजों का सामना करना ही पड़ता है।’ अगली बार कलाम जब उनके घर तो उनकी पत्नी ने दोनों को खाना परोसा।

अब्दुल कलाम और नरेंद्र मोदी की यह तस्वीर गुजरात सरकार के शिप बिल्डिंग पर हुए एक सेमिनार के दौरान यह तस्वीर ली गई थी।
किस्सा 4 – गलत क्लास में बैठने पर टीचर ने कान खींचे
रामेश्वरम से निकलकर अब्दुल कलाम ने रामानाथापुरम के श्वार्ट्ज हाई स्कूल में एडमिशन ले लिया। यहां उन्हें घर के आराम की, दोस्तों की और मां के हाथों का खाना याद आने लगा। लेकिन पढ़ाई का ख्याल कर वो हर बार रुक जाते।
रामाकृष्णा अय्यर उन्हें गणित पढ़ाते थे। एक दिन रामाकृष्णा जब किसी दूसरी क्लास को पढ़ा रहे थे तो कलाम भी वहां जाकर बैठ गए। टीचर को जब यह पता चला तो अब्दुल कलाम का कान पकड़ा और पूरी क्लास के सामने डांट लगाई। क्लास से बाहर भी निकाल दिया। इसके बाद साल के अंत में जब कलाम को गणित में पूरे नंबर मिले तो रामाकृष्णा अय्यर ने मॉर्निंग असेंबली में पूरे स्कूल के सामने कलाम की तारीफ करते हुए कहा, ‘मैं जिसका भी कान खींचता हूं वो बड़ा आदमी बन जाता है। मेरी बात याद रखना, ये बच्चा एक दिन अपने स्कूल और टीचर्स का नाम रौशन करेगा।’
किस्सा 5 – एक महीने का प्रोजेक्ट 3 दिन में पूरा करने का चैलेंज मिला
MIT यानी मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में पढ़ाई के आखिरी साल में अब्दुल कलाम और उनके चार साथियों को अटैक एयरक्राफ्ट डिजाइन करने का प्रोजेक्ट दिया गया। एयरोडायनेमिक डिजाइन बनाने की जिम्मेदारी कलाम को दी गई।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम एयरफोर्स जॉइन करना चाहते थे लेकिन सिलेक्शन नहीं हो पाया। हालांकि राष्ट्रपति बनने के बाद वो तीनों सेनाओं के सुप्रीम बन गए थे। उन्होंने सुखोई Su- 30MKI फाइटर जेट भी उड़ाया।
एक दिन उनके डिजाइन के प्रोफेसर श्रीनिवासन जोकि उन दिनों MIT के डायरेक्टर भी थे, कलाम के पास आए और उनका डिजाइन देखने लगे। डिजाइन देखकर प्रोफेसर खूब नाराज हुए और कलाम से कहा, ‘देखो आज शुक्रवार है। मैं तुम्हें तीन दिन का समय देता हूं। अगर सोमवार तक तुम्हारा डिजाइन तैयार नहीं मिला तो तुम्हारी स्कॉलरशिप रोक दी जाएगी।’
कलाम ने प्रोफेसर से बहुत कहा कि उन्हें इसके लिए एक महीने का समय लगेगा लेकिन वो प्रोफेसर नहीं माने। इसके बाद अब्दुल कलाम ने दिन-रात एक कर दी। उस रात कलाम पूरी रात डिजाइन पर काम करते रहे। खाना खाने के लिए भी नहीं उठे। अगली सुबह उन्होंने सिर्फ एक घंटे का ब्रेक लिया जिसमें उन्होंने हाथ-पैर धोए और कुछ खाना खाया। रविवार सुबह जाकर कहीं ऐसा लगा कि डिजाइन पूरा होने वाला। इसी दौरान अब्दुल कलाम को ऐसा लगा कि कमरे में उनके अलावा कोई दूसरा भी है। पीछे मुड़कर देखा तो प्रोफेसर श्रीनिवासन खड़े थे। प्रोफेसर जिमखाना से सीधा वहां आए थे और अब तक अपने टेनिस खेलने वाले कपड़ों में ही थे। कलाम का डिजाइन देखने के बाद प्रोफेसर श्रीनिवासन ने उन्हें गले लगा लिया और कहा, ‘मैं जानता था कि मैं तुम पर प्रेशर डाल रहा हूं और मैंने जो तुम्हें डेडलाइन दी थी उसे भी मैच करना आसान नहीं था। मैंने उम्मीद नहीं की थी कि तुम इतना अच्छा करोगे। बहुत अच्छे।’
किस्सा 6 – इमली के बीजों से हुई पहली कमाई
1939 में जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, उस समय कलाम 8 साल के थे। युद्ध की वजह से बाजार में अचानक इमली के बीजों की डिमांड बढ़ गई। 8 साल के कलाम ने इमली के बीज इकट्ठा कर उन्हें बेचना शुरू कर दिया। एक दिन में उनकी 8 आने की कमाई होती थी।
कुछ समय बाद युद्ध की वजह से रामेश्वरम स्टेशन पर ट्रेन ने रुकना बंद कर दिया। कलाम का कजिन शमसुद्दीन रामेश्वरम में अखबार बांटने का काम करता था लेकिन ट्रेन के स्टेशन पर रुकने से उसका काम मुश्किल में पड़ गया। इसके बाद तरकीब निकाली गई कि चलती ट्रेन से अखबार के बंडल बाहर फेंके जाएंगे जिन्हें बाहर खड़ा शमसुद्दीन पकड़ लेगा। जल्द ही शमसुद्दीन को समझ आया कि इस काम के लिए उसे एक साथी की जरूरत है। उसने अब्दुल कलाम से मदद मांगी। इस तरह अब्दुल कलाम को पहली सैलरी मिली।
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